LESSON :9 – Nilasrgalah

नीलशृगालः एक लोमड़ी-सा पशु है जो गलती से नीले रंग के पात्र में गिरकर अपने आपको विशेष समझने लगता है। वह अपने रंग से प्रभावित होकर अन्य शृगालों को अपने अधिपत्य के प्रति प्रेरित करता है, परन्तु अंततः उसकी स्वाभाविक प्रवृत्ति ही उसे मुश्किल में डाल देती है और वह शेर द्वारा मारा जाता है। कहानी यह सिखाती है कि स्वभाव बदलना कठिन होता है।

नवमः पाठः — नीलशृगालः (Navamaḥ pāṭhaḥ — Nīlaśṛgālaḥ) नौवाँ पाठ — नीलशृगाल
कस्मिंश्चिद् अरण्ये एकः शृगालः प्रतिवसति स्म। (Kasmiṁścid araṇye ekaḥ śṛgālaḥ prativasati sma.) कहीं एक जंगल में एक शृगाल रहता था।
सः एकदा स्वेच्छया नगरोपान्ते भ्रमन् कुक्कुरैः भीतः रञ्जकस्य नीलाभाण्डे पतितः। (Saḥ ekadā sveccayā nagaropānte bhraman kukkuraiḥ bhītaḥ rañjakasya nīlābhāṇḍe patitaḥ.) एक बार वह इच्छा से शहर के पास घूमते हुए कुत्तों से डरकर रंगकर्म करने वाले के नीले पात्र में गिर गया।
ततोऽसौ वन् गतः आत्मानं नीलवर्णम् अवलोक्य अचिन्तयत्— (Tato’sau van gataḥ ātmānaṁ nīlavarṇam avalokya acintayat—) फिर वह वन में जाकर अपने आप को नीले रंग में देखकर सोचने लगा—
अहं इदानीम् उत्तमवर्णः, तदहं स्वकीयोत्कर्षं किं न साधयामि? (Ahaṁ idānīm uttamavarṇaḥ, tadahaṁ svakīyotkarṣaṁ kiṁ na sādhayāmi?) मैं अब अच्छे वर्ण वाला क्यों न बनूँ; क्या मैं अपनी उन्नति नहीं करूँ?
इत्यालोच्य शृगालान् आहूय स उवाच— (Ityālocya śṛgālān āhūya sa uvāca—) यह सोचकर उसने शृगालों को बुलाकर कहा—
‘मां भगवान् नन्देदवः स्ववर्णेन अरण्येऽभिषिच्यत’। (‘Māṁ Bhagavān Nandedavaḥ svavarṇena araṇye’bhisicyata’.) “हे भगवान्, मुझे मेरे रंग से अरण्य में अभिषेकित कर दो।”
तदर्थं अरण्ये अस्मदादेश्या व्यवहारः कार्यः। (Tadarthaṁ araṇye asmadādeśyā vyavahāraḥ kāryaḥ.) इसलिये जंगल में मेरे आदेशानुसार व्यवहार किया जाए।
शृगालाः तं निश्चयार्थम् अवलोक्य प्रणम्य अवदन्— (Śṛgālāḥ taṁ niścayārtham avalokya praṇamya avadan—) शृगालों ने उसे देखकर विधिवत् प्रणाम कर कहा—
‘यथा आज्ञापयति देव!’ (‘Yathā ājñāpayati deva!’) “जो भगवान् आज्ञा देंगे वैसा ही होगा!”
इत्यनेन सर्वं क्रमेण आर्यवत्सु: तस्य आधिपत्यं देवत्वेनावर्त। (Ityanena sarvaṁ krameṇa āryavatsuḥ tasya ādhipatyaṁ devatvenaāvarta.) इस प्रकार क्रमशः सब कुछ हुआ और उसके अधिपत्य का देवत्व सा प्रभाव रह गया।
इतः सः व्याघ्र–सिंह–इत्यादि उत्तममान्यं प्राप्य स्वजनतानां दूरस्थितवान्। (Itaḥ saḥ vyāghra–siṁha–ityādi uttamamānyaṁ prāpya svajanatāṁ dūrasthitavān.) इसी से वह व्याघ्र-शेर आदि को भी श्रेष्ठ मानकर अपने लोगों से अलग ठहरा।
ततः दुःस्थितौ शृगालाः अवलोक्य एकस्मिन् दुर्दिनाऽलने एकत्वात् प्रीतिमान्। (Tataḥ duḥsthitau śṛgālāḥ avalokya ekasmin durdinā’lane ekatvāt prītimān.) फिर बुरे समय में शृगालों ने देखा कि एक साथ रहकर वे आनंदित हो सकते हैं।
यथाऽहम् व्याघ्रैः परिचारितो भवेत् तथा उपायं करिष्यामि।’ (Yathā’ham vyāghraiḥ paricārito bhavet tathā upāyaṁ kariṣyāmi.’) “मैं व्याघ्रों की तरह सेवा-योग्य बन जाऊँगा; ऐसा उपाय करूँगा।”
एतद् व्याचक्षते— अस्य वर्णमान्यं विप्रलब्धं सत्यम्। (Etad vyācakṣate— asya varṇamānyaṁ vipralabdhaṁ satyam.) यह कहा गया — कि इसका वर्णसम्मान एक धोखा था।
एषः शृगालम् अज्ञात राजानं मन्यते। (Eṣaḥ śṛgālam ajñāta rājānaṁ manyate.) वे इस शृगाल को अनजान राजा समझते हैं।
ततः सञ्जानते सर्वं तत्र संमिल्य एकैकं महारणवं अनुगच्छन् तं शब्दं श्रुत्वा स नीलशृगालोऽपि जातिस्वभावतः सः शब्दम् अकरोत्। (Tataḥ sañjānate sarvaṁ tatra samilya ekaikaṁ mahāraṇavaṁ anugacchan taṁ śabdaṁ śrutvā sa nīlaśṛgālo’pi jātisvabhāvataḥ saḥ śabdam akarot.) फिर सब मिलकर जब आवाज़ की गर्जना हुई, नीलशृगाल भी स्वभावतः उसी तरह आवाज करने लगा।
तथा कूजे सति सिंहः तं हत्वा। (Tathā kūje sati siṁhaḥ taṁ hatvā.) और जब वह गरजा, तो सिंह ने उसे मार डाला।
यतः— “यः स्वभावो हि यस्यास्ति स नित्यं दुरतिक्रमः।” (Yataḥ— “Yaḥ svabhāvo hi yasyāsti sa nityaṁ duratikramaḥ.”) क्योंकि — “जिसका स्वभाव वैसा ही रहता है, उसे बदलना कठिन है।”
📘 Vocabulary
संस्कृत उच्चारण (हिन्दी) हिन्दी अर्थ
कस्मिंश्चित् kasmiṁścit किसी
अरण्ये araṇye जंगल में
शृगालः śṛgālaḥ लोमड़ी / सियार
प्रतिवसति prativasati रहता था
स्वेच्छया sveccayā अपनी इच्छा से
नगरोपान्ते nagaropānte शहर के पास
भ्रमन् bhraman घूमता हुआ
कुक्कुरैः kukkuraiḥ कुत्तों द्वारा
भीतः bhītaḥ डरा हुआ
नीलाभाण्डे nīlābhāṇḍe नीले रंग के पात्र में
आत्मानम् ātmānam अपने शरीर को / स्वयं को
नीलवर्णम् nīlavarṇam नीला रंग
अचिन्तयत् acintayat सोचा / विचार किया
उत्तमवर्णः uttamavarṇaḥ उच्च / अच्छा रंग
स्वकीयोत्कर्षम् svakīyotkarṣam अपनी उन्नति
आलोच्य ālocya विचार करके
आहूय āhūya बुलाकर
अभिषिच्यत abhiṣicyata अभिषेक किया
आधिपत्यं ādhipatyaṃ अधिकार / प्रभुता
देवत्वेन devatvena देव समान
व्याघ्र vyāghra बाघ
सिंहः siṁhaḥ सिंह
दुःस्थितः duḥsthitaḥ कठिन अवस्था में
एकत्वात् ekatvāt एकता के कारण
प्रीतिमान् prītimān खुश / प्रसन्न
महारणवम् mahāraṇavam बड़ी गर्जना / जोर का शोर
शब्दम् śabdam आवाज़
दुरतिक्रमः duratikramaḥ पार न किया जाने वाला
अभ्यास — पूर्ण समाधान
1. उच्चारणं कृत्वा पुस्तिकायां च लिखत– (Uccāraṇaṁ kṛtvā pustikāyāṁ ca likhata–) नीचे शब्दों का उच्चारण लिखो:
कस्मिंश्चित्, अरण्ये, स्वेच्छया, स्वकीयोत्कर्षम्, अभिषिक्तवती, अस्मदादेश्या, व्याघ्रादिभिः, सम्मिल्य, यथास्ति, इत्यनेव, कुक्कुरैः।
(Kasmiṁścit, Araṇye, Sveccayā, Svakīyotkarṣam, Abhiśiktavatī, Asmadādeśyā, Vyāghrādibhiḥ, Sammilya, Yathāsti, Ityaneva, Kukkuraiḥ.)
कस्मिंश्चित् = किसी, अरण्ये = जंगल में, … (ऊपर vocabulary तालिका देखें)
2. एकपदेन उत्तरत– (Ekapadena uttarata–) लघु (एक-शब्द) उत्तर दें:
(क) शृगालः कुत्र वसति स्म?
(Ka) Śṛgālaḥ kutra vasati sma?)
[प्रश्न का अर्थ: शृगाल कहाँ रहता था?]
उत्तर: अरण्ये(Araṇye)= जंगल में
(ख) तस्य आधिपत्यं के स्वीकृतवन्तः?
(Kha) Tasya ādhipatyaṁ ke svīkṛtavantaḥ?)
[प्रश्न का अर्थ: उसका अधिकार किसने स्वीकार किया?]
उत्तर: व्याघ्रादयः(Vyāghrādayaḥ)= बाघ आदिद
(ग) सर्वे शृगालाः सांयकाले किम् अकर्तन्?
(Ga) Sarve śṛgālāḥ sāyākāle kim akartan?)
[प्रश्न का अर्थ: शाम के समय शृगाल क्या करते थे?]
उत्तर: सम्मिल्य(Sammilya)= एकत्रित होकर
(घ) सिंहः कं हतवान्?
(Gha) Siṁhaḥ kaṁ hatavān?)
[प्रश्न का अर्थ: सिंह ने किसे मारा?]
उत्तर: नीलशृगालम्(Nīlaśṛgālam)= नीलशृगाल
3. एकवाक्येन उत्तरत– (Ekvākyena uttarata–) एक वाक्य में उत्तर दें:
(क) नीलवर्णः शृगालः किम् अचिन्तयत?
(Ka) Nīlavarṇaḥ śṛgālaḥ kim acintayat?)
[प्रश्न: नील रंग वाला शृगाल क्या सोचता था?]
उत्तर (संस्कृत): अस्मिन् अवस्थायाम् स्वकीय उत्कर्षं साधयिष्यामीति।(Asmin avasthāyām svakīya utkarṣaṁ sādhayiṣyāmīti.)= इस अवस्था में मैं अपनी उन्नति करूँगा।
(ख) वृद्घशृगालेन किम् प्रतिज्ञातम्?
(Kha) Vṛddha-śṛgālena kim pratijñātam?)
[प्रश्न: वृद्ध शृगाल ने क्या प्रतिज्ञा की?]
उत्तर (संस्कृत): यथा व्याघ्रादिभिः परिचरितो भवेत्।(Yathā vyāghrādibhiḥ paricārito bhavet.)= कि वह बाघ-प्रकार से व्यवहार करेगा।
(ग) नीलवर्णः शृगालः किम् उक्तवान्?
(Ga) Nīlavarṇaḥ śṛgālaḥ kim uktavān?)
[प्रश्न: उसने क्या कहा?]
उत्तर (संस्कृत): मां भगवान् नन्देदवः स्ववर्णेन अरण्ये अभिषिच्यत।(Māṁ Bhagavān Nandedavaḥ svavarṇena araṇye abhiśicyata.)= मुझे मेरे रंग से जंगल में अभिषेकित करो।
4. मण्डूष्ठात: पदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत– (Maṇḍūṣṭhāt padāni citvā rikta-sthānāni pūrayat–) रिक्त स्थान भरें (दिए शब्द): पतितः, शृगालः, दुरतिक्रमः, वनदेवता
(क) कस्मिंश्चिद् अरण्ये एकः …… वसति स्म।
(Ka) Kasmiṁścid araṇye ekaḥ …… vasati sma.)
उत्तर (संस्कृत): शृगालः(Śṛgālaḥ)= शृगाल
(ख) स रञ्जकस्य नीलाभाण्डे ……… ।
(Kha) Sa rañjakasya nīlābhāṇḍe ……..)
उत्तर (संस्कृत): पतितः(Patitaḥ)= गिर गया
(ग) भगवान् …… स्वहस्तेन अरण्यराज्ये अभिषिक्तवती।
(Ga) Bhagavān …… svahastena araṇyarājye abhiśiktavatī.)
उत्तर (संस्कृत): वनदेवता(Vanadevatā)= वनदेवता
(घ) यः स्वभावो हि यस्यास्ति स नित्यं …… ।
(Gha) Yaḥ svabhāvo hi yasyāsti sa nityaṁ …… .)
उत्तर (संस्कृत): दुरतिक्रमः(Duratikramaḥ)= कठिनाई
5. वाक्यानि रचयत– (Vākyāni racayata–) नीचे दिए पदों से वाक्य बनायें (शिक्षक निर्देश):
प्रतिवसति स्म — (उदाहरण वाक्य)
(Prativasati sma — (Udāharaṇa vākyam))
उदाहरण: शृगालः अरण्ये प्रतिवसति स्म। — शृगाल जंगल में रहता था।
महारणवम् — (उदाहरण वाक्य)
(Mahāraṇavam — (Udāharaṇa vākyam))
उदाहरण: सर्वे मिल्य महारणवं कुर्वन् आक्रोशनम् अकरवन।
शनेः–शनेः — (उदाहरण वाक्य)
(Śaneḥ–śaneḥ)
उदाहरण: शृगालः शनेः–शनेः स्ववर्णं परिवर्तयितुम् सचेष्टत।
नीलाभाण्डे — (उदाहरण वाक्य)
(Nīlābhāṇḍe)
उदाहरण: तं नीलाभाण्डे पतितम् दृष्ट्वा भयभीतः आगतन्।
6. संस्कृतभाषायाम् अनुवादं कुरुत– (Saṁskṛtabhāṣāyām anuvādaṁ kuruta–) नीचे हिन्दी वाक्यों के संस्कृत अनुवाद लिखो:
(क) एक बार वह नीले के पात्र में गिर गया।
(Ka) Ekā bār—)
संस्कृत उत्तर: एकदा सः नीलाभाण्डे पतितः।(Ekadā saḥ nīlābhāṇḍe patitaḥ.)हिन्दी अर्थ: वह एक बार नीले पात्र में गिर गया।
(ख) सभी वनवासियों ने उसका आधिपत्य स्वीकार कर लिया।
(Kha) Sarve vanavāsī—)
संस्कृत उत्तर: सर्वे अरण्यवासी तस्य आधिपत्यं स्वीकृतवन्तः।(Sarve araṇyavāsī tasya ādhipatyaṁ svīkṛtavantaḥ.)हिन्दी अर्थ: सभी वनवासी उसका अधिकार स्वीकार कर लिये।
(ग) सभी ऊँची आवाज करने लगे।
(Ga) Sarve uccaiḥ—)
संस्कृत उत्तर: सर्वे उच्चैः शब्दं कर्तुं प्रवृत्ताः।(Sarve uccaiḥ śabdaṁ kartuṁ pravṛttāḥ.)हिन्दी अर्थ: सभी ऊँची आवाज करने लगे।
7. हिन्दीभाषायाः अंशाः कथायाः अनुवादं कृत्वा पुस्तिकायां लिखत। (Saṁskṛta Anuvāda — likhata.) विद्यार्थी से अपेक्षा: दिए हुए हिन्दी अंश का संस्कृत में अनुवाद कर लिखें।
श्लोकार्थः — यः स्वभावो हि यस्यास्ति स नित्यं दुरतिक्रमः।
(Ślokārthaḥ — Yaḥ svabhāvo hi yasyāsti sa nityaṁ duratikramaḥ.)
श्लोकार्थ: जिसका जो स्वभाव होता है, उसका परिवर्तन करना कठिन होता है।

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